LESSON TO BE LEARNT FROM SHASHANK SINGH RAJPUT CASE

 

Lesson to be learnt


माता पिता के साथ 

थोड़ा लीक से हटकर बात... 

सुशांत से जो गलती हुई उससे सबक ले नयी पीढ़ी... 

सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी संदेहास्पद मौत एक सबक भी है। 

आजकल की नौजवान पीढ़ी के लिए विशेषकर सम्पत्ति सफ़लता और सम्मान की विशेष ऊंचाईयों को छूने वाली वर्तमान नौजवान पीढ़ी के लिए. 

इन दिनों यह खबरें देख सुन कर मैं हतप्रभ हूं कि सुशांत की बहनें, यहां तक कि उसके 74 वर्षीय वृद्ध पिता तक सुशांत से कई कई महीने तक बात नहीं कर पाते थे. 

रिया चक्रवर्ती की इसमें जो भूमिका थी वह उजागर हो रही है. 

लेकिन मेरी पोस्ट का मूल तत्व यह है कि... 

सुशांत के इर्द-गिर्द यह स्थितियां बनी क्यों... 

इस बारे में मेरा मत इनदिनों हो रहीं भांति भांति की चर्चाओं से कुछ अलग है जिसे मैं साझा कर रहा हूं. 

पहले तीन तथ्य समझ लीजिए तो बात पूरी तरह समझ में आयेगी. 

नयी पीढ़ी भले अनजान हो लेकिन मेरी पीढ़ी और मुझसे पहले वाली पीढ़ी जानती है कि इसी फिल्मी दुनिया में दौलत और शोहरत की जिन ऊंचाइयों को राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र ने छुआ था उन ऊंचाइयों की तुलना में पांच प्रतिशत ऊंचाई भी सुशांत ने नहीं छुई थी. 

लेकिन आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र की तिकड़ी अपने फिल्मी कैरियर के चरम पर जब दौलत और शोहरत की नयी ऊंचाइयों को लगातार पार करती जा रही थी। उस समय इनके माता पिता इनसे अलग नहीं रहते थे. 

ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले अपने माता पिता को धर्मेन्द्र मुम्बई में अपने साथ रखते थे. 

इसी वर्ष 83 वर्ष की आयु में धर्मेन्द्र ने अपनी माताश्री को याद करते हुए उनकी फोटो के साथ उनकी यादों को ट्वीट करते हुए यह बताया था कि जब तक मां जीवित रहीं तब तक घर पर पैसों का हिसाब किताब वो ही करती थीं. मेरी फिजूलखर्ची पर टोकती भी रहती थीं. 

धर्मेन्द्र के लिए तो उस जमाने में मशहूर था कि उनके गांव का कोई भी व्यक्ति मुम्बई आकर उनके घर में रहने के लिए स्वतंत्र था. 

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यही स्थिति राजेश खन्ना की थी. पिता का देहान्त हो चुका था और उनकी मां उनके साथ ही रहती थीं. 

ऐसा नहीं है कि राजेश खन्ना की मां असहाय थीं. बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि राजेश खन्ना गोद ली हुई सन्तान थे और उन्हें गोद लेनेवाले माता पिता 60 के दशक में करोड़पति थे. 

इसलिए मां राजेश खन्ना पर आश्रित नहीं थीं किन्तु अन्तिम समय तक वो राजेश खन्ना के साथ उनके घर में ही रहीं. 

अन्तिम उदाहरण अमिताभ बच्चन का. 

सारी दुनिया जानती है कि अन्तिम समय तक उनके पिता हरिवंश राय बच्चन और उनकी माताश्री तेजी बच्चन उनके साथ उनके घर में ही रहते थे. 

बच्चन जी का देहान्त 96 वर्ष की आयु में 2003 में तथा तेजी जी का देहान्त 93 वर्ष की आयु में 2007 में हुआ. 

यह तिथियां बताती हैं कि अमिताभ बच्चन की अभूतपूर्व लोकप्रियता और स्टारडम के पूरे दौर में उनके माता पिता उनके साथ ही थे. 

अब बात मुद्दे की. 

ऐसा नहीं है कि हिन्दी फ़िल्मों के जिन तीन सुपर स्टारों का ऊपर जिक्र किया है, उन्होंने अपने उस दौर में कम मौज मस्ती की. 

उनकी रंगीन जीवनशैली के गुलछर्रे के किस्सों से तब की फिल्मी पत्रिकाएं पटी रहती थीं. 

इन फिल्मी सितारों के जीवन में भयानक झंझावात भी आए. 

लेकिन किसी का भी हश्र सुशांत या उस जैसे कुछ और लोगों की तरह नहीं हुआ. 

यह सितारे उन झंझावातों से धमक के साथ उबरते रहे और चमकते रहे. 

राजेश खन्ना, तो नहीं रहे लेकिन धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन आज भी एक आलीशान जिंदगी जी रहे हैं. 

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दरअसल व्यक्ति की मानसिक वैचारिक और आंतरिक ऊर्जा का केन्द्र उसका घर होता है तथा माता पिता उस ऊर्जा के मुख्य स्त्रोत होते हैं. 

कितना भी भीषण संकट या समस्या क्यों ना हो वो चट्टान की तरह आपके साथ खड़े होते हैं और आपका मनोबल नहीं टूटने देते हैं. आपकी कमियों गलतियों की आलोचना करते हुए भी वो जिस तरह, जिस शैली में उसे स्वीकार लेते हैं, आत्मसात कर लेते हैं. उस तरह से कोई दूसरा व्यक्ति कर ही नहीं सकता. 

मां और पिता की उपस्थिति में रिया सरीखी बलाएं घर के बाहर आपके आसपास मंडराने में तो सफल हो सकती हैं लेकिन आपके घर की चौखट से कोसों दूर रहती हैं. 

मां और पिता ने आपको आपके जन्म के साथ ही देखा जांचा परखा और समझा होता है. यह अवसर आपकी पत्नी/पति और आपकी सन्तान को नहीं मिलता. कुछ अपवाद हो सकते हैं। लेकिन 99% मामलों में ऐसा ही होता है। 

बहुत विस्तृत विषय है, एक पुस्तक लिखी जा सकती है। इस पर लेकिन आज बहुत संक्षेप में इस विषय की चर्चा इसलिए की क्योंकि मेरा मानना है कि सुशांत के साथ यदि उसके वृद्ध पिता रह रहे होते तो जितने अजीबोगरीब प्रकरण आज सामने आ रहे हैं, जो उसकी मृत्यु के कारण भी बने, उनमें से एक भी प्रकरण सुशांत के जीवन में नहीं घटता. 

इन घटनाओं से युवा पीढ़ी को एक सबक लेने की जरूरत है कि माता-पिता और परिजनों से बढ़कर दूसरा हितैषी कोई और नहीं हो सकता।

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